Monday, 7 September 2015

ek ghazal

हौसला फिर कहीं से पाएं हैं
देर के बाद मुस्कुराएं हैं |
हाथ अपने जला के आएं हैं
पर दीये हमने ही जलाएं हैं |
नाख़ुदा क्या गुमान करता है
हमने कितने ख़ुदा बनायें हैं |
जिनके बातों से फूल झरते हैं
उनके खंज़र भी आजमाएं हैं |
क्यों अँधेरा ये टल नहीं जाता
सोच में घुल रही शमाएँ हैं |
तीरगी से है दिल बहल जाता
उनके गेसू हैं या घटाएं हैं
@sushant
अगर तुम्हें
नहीं दिखती मुझमे
काम की बातें
तो यह सिर्फ मेरा दोष
नहीं
यह भी सम्भव है
कि समाप्त हो चुकी हों
तुम्हारे भीतर की सम्भावनाये ।
अगर बार बार की असफलता
तुम्हे झकझोर नहीं देती
नींद से नहीं जगा देती
तो मान लो कि
तुमने मान ली है
हार ।
अगर मैं तुम्हें
मैं ही नज़र नहीं आता
तो खुद को देखो
शायद तुम खुद को
तुम ही नज़र नहीं आओगे
याद दावा नहीं
सलाह है
सबके ऊपर
अल्लाह है । ।
@सुशांत