ek ghazal
हौसला फिर कहीं से पाएं हैं
देर के बाद मुस्कुराएं हैं |
हाथ अपने जला के आएं हैं
पर दीये हमने ही जलाएं हैं |
हौसला फिर कहीं से पाएं हैं
देर के बाद मुस्कुराएं हैं |
हाथ अपने जला के आएं हैं
पर दीये हमने ही जलाएं हैं |
नाख़ुदा क्या गुमान करता है
हमने कितने ख़ुदा बनायें हैं |
जिनके बातों से फूल झरते हैं
उनके खंज़र भी आजमाएं हैं |
क्यों अँधेरा ये टल नहीं जाता
सोच में घुल रही शमाएँ हैं |
तीरगी से है दिल बहल जाता
उनके गेसू हैं या घटाएं हैं
@sushant
हमने कितने ख़ुदा बनायें हैं |
जिनके बातों से फूल झरते हैं
उनके खंज़र भी आजमाएं हैं |
क्यों अँधेरा ये टल नहीं जाता
सोच में घुल रही शमाएँ हैं |
तीरगी से है दिल बहल जाता
उनके गेसू हैं या घटाएं हैं
@sushant